क्या है Designer Baby? क्या विज्ञान ने सच में इसे मुमकिन कर दिया है।

कुछ वर्ष पहले की बात है, चीन का एक वैज्ञानिक हे जियानकुई ने दावा किया कीउसने जुड़वा भ्रूण का डीएनए एडिट कर लिया है।  डीएनए एडिट कामयाब रहा और इसके बाद जुड़वा बच्चियों का जन्म हुआ।

क्या है Designer  Baby? क्या विज्ञान ने सच में इसे मुमकिन कर दिया है।

कुछ वर्ष पहले की बात है, चीन का एक वैज्ञानिक हे जियानकुई ने दावा किया की उसने जुड़वा भ्रूण का डीएनए एडिट कर लिया है।  डीएनए एडिट कामयाब रहा और इसके बाद जुड़वा बच्चियों का जन्म हुआ। साधारण भाषा में समझें तो डीएनए मतलब डिऑक्सी राइबो न्यूक्लिक एसिड ही किसी जीवन का आधार होता है और वैज्ञानिक ने इसी में छेड़छाड़ कर दी थी।  विज्ञान जगत ने इस पर काफी हैरानी जताई और लाखों लोगों ने इसकी कड़ी आलोचना भी की।  डीएनए से छेड़छाड़ करने के कारन वैज्ञानिक हे जियानकुई को घर में नजरबन्द कर दिया गया। अंतराष्ट्रीय  मीडिया में तब एक नया शब्द "डिज़ाइनर बेबी" सुनने को मिला।  
आलोचकों ने तब इसे अनैतिक बताया और कहा की इस तरह का प्रयोग पूरी मानव जाती को ही बदल देगी। इसके कुछ समय के बाद एक और महिला के इसी तरह से गर्भवती होने का खबर सामने आया। 
इस ब्लॉग में मैं इस बात पर फोकस करने का कोसिस कर रहा हूँ की क्या डीएनए से छेड़छाड़ वाकई एक चिंता करने का विषय है? क्या सच में ये प्रयोग मनुष्य के प्रजाति को बदल सकती है? कहीं ऐसा तो नहीं होने लगेगा की इस तकनीक का इस्तेमाल करके लोग ऐसे बच्चे पैदा करने लगेंगे जो मानसिक और शारीरिक रूप से बाकी बच्चों से बेहतर होंगे।  क्या ऐसी सूरत में इस बात का खतरा नहीं होगा की कोई सिरफिरा पूरी दुनिया पर राज करने की बुरी नियत से बिलकुल नयी और बेहतर मानव प्रजाति को लेबोरेटरी में पैदा करने लगे।  
इन बातों का जवाब तलाशने के लिए हमें कुछ विशेज्ञों की राय जाननी चाहिए।
सेयरी चेंग, जो की एडिनबरो यूनिवर्सिटी में बायो-एथिक्स पर शोध करती हैं । सेयरी चेंग कहती है की वह उस समय होन्ग कोंग में थी जब वैज्ञानिक हे जियानकुई, डीएनए एडिटिंग के एलान के बाद पहली बार मीडिया के सामने आये ।  दुनियाभर की मीडिया उन्हें अपने कैमरों में कैद करा रहा था, वहां मौजूद लोगों के मन में हैरानी और दिमाग में कई सवाल पैदा हो रही थी।  वैज्ञानिक हे जियानकुई का दवा था की उसने इंसान के खून में एक उस जीन को खोज निकाला है जिससे HIV एड्स का इन्फेक्शन हो सकता था। और फिर उसे निकालकर बाहर कर दिया। इसके लिए वैज्ञानिक हे जियानकुई ने क्रिस्पर-9 तकनीक का इस्तेमाल का दवा किया। मानव डीएनए में ये बदलाव वैसा ही था जैसा की आप अपने कंप्यूटर में मौजूद अपने किसी डॉक्यूमेंट के साथ करते हैं। आसान भासा में में समझें तो ये वैसा ही था जैसे आप अपने कंप्यूटर में मौजूद किसी वर्ड फाइल से कुछ शब्द छांटकर डिलीट कर दिया।  बाकी लोगों की तरह सेयरी चेंग इस प्रयोग और इसका परिणाम को देखकर परेशान हुई। ऐसा ये पहीलबार हुआ जब इस दुनिया ने इस तरह का डीएनए में बदलाव और इस बदलाव के बाद जन्म लिए बच्चे को देखा। सेयरी चेंग कहती है "पहले भी हमने देखा है की विज्ञान ने कुछ ऐसा किया हो जिसका नतीजा बुरे हो सकते हैं, उसके बारे में समाज में बहस होती है"। 
ज्यादातर तकनीक की तरह जेनेटिक तकनीक में भी अच्छी और बुरी, दोनो  तरह की संभावनाएं है। यही वजह हैं की डिज़ाइनर बेबी का विचार उम्मीद के साथ साथ एक डर भी पैदा करता हैं। 
सेयरी चेंग कहती हैं "कुछ लोग चाहेंगे की ये सब पूरी तरह से बंद कर दिया जाये, परन्तु ऐसे बहुत से लोग होंगे जो सालों से बहुत उम्मीद के साथ ऐसे ही किसी तकनीक का उम्मीद कर रहे होंगे। ये वो लोग हैं जिन्होंने अपने आस पास ऐसे लोगों को देखा हैं जिन्हे किसी प्रकार का जेनेटिक बीमारी है। मुझे लगता है की डिज़ाइनर बेबी सही शब्द नहीं है, ये कोई जूता या बैग नहीं है जिसे डिज़ाइनर कहा जाये। ये शब्द उन माँ-बाप के लिए भी काफी निराशा भरा हो सकता है, जिन्हे बस एक स्वस्थ बच्चा चाहिए"। 
किसी भी तकनीक के अच्छे और बुरे, दोनों प्रकार के परिणाम हो सकते हैं, सायद इस मामले में भी अच्छे और बुरे असर का फर्क करना आवश्यक है। 
शेरीन, जो की पेशे से एक शिक्षिका हैं, कहती हैं "मैं हमेशा से बच्चा चाहती थी।  अपना परिवार चाहती थी। मैंने टीचर बनना पसंद किया ताकि मैं बच्चों के बिच रह सकूँ"। 
शेरीन जब पहली बार गर्भवती हुई तो उन्हें बहुत दिक्कत हुई। शेरीन, सर्जरी के बाद भी माँ नहीं बन सकी। तब उन्हें उम्मीद की एक मात्र किरण नजर आयी। IVF यानि इन विट्रो फर्टिलाइजेशन, इस तकनीक में किसी महिला के अंडाणु लैब में फर्टिलाइज़ कराकर विकसित होने के लिए दोबारा महिला के गर्भाशय में रख दिए जाते हैं। लेकिन शेरीन के लिए IVF का ऑप्शन भी इतना आसान नहीं था। 
शेरीन कहती हैं "IVF का ऑप्शन फेल होने पर तकलीफ और भी बढ़ जाती है, पांच छह कोशिश बेकार हुई और मेरे पति ने यहाँ तक कह दिया की अब हमें ये सब बंद कर देना चाहिए"। 
शेरीन की कोशिशें जारी रही, इसकी प्रमुख वजह ये थी की क्लिनिक में उन्हें फर्टिलाइज़्ड एम्ब्र्यो देखने का मौका मिला। इससे उन्हें भरोसा हुआ की उनका भ्रूण भी स्वस्थ होगा। 
शेरीन उम्मीद के सहारे आगे बढ़ती रही। तकनीक ने उम्मीद के साथ मिलकर शेरीन की जिंदगी बदल दी। लेकिन उम्मीद के अलावे और भी इमोशंस हैं जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। यही तो समस्या है। 
स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर, हंक ग्रिली कहते हैं "मुझे नहीं पता की मेरे जींस में कुछ मिलाया गया है। हो सकता है मेरे जींस में कुछ खतरे छिपे हों। लेकिन मुझे नहीं पता की वो क्या है और न ही मैं उसका पता करना चाहता हूँ। मैं अपना वजन बढ़ने के वजह से अक्सर जूझता रहा। शायद इसका वजह जेनेटिक है। बेहतर होता मैं थोड़ा दुबला होता, लेकिन ऐसा तो मैं वैसे नहीं होता जैसा आज हूँ"। 
प्रोफेसर, हंक ग्रिली इस बात से सहमत हैं की जेनेटिक तकनीक में बहुत संभावनाएं हैं। साथ ही उनका ये भी मानना है की इस तकनीक में छिपी आशंकाओं को ख़ारिज नहीं किया जा सकता। 
यदि हम एक खास तरह के लोग बनाने के लिए ह्यूमन जींस में बदलाव करते हैं, तो हम मानव जाती का मौजूदा डाइवर्सिटी, यानि इंसानो में जो विविधता है, उसे जाने-अनजाने कम कर रहे होंगे। इसके परिणाम ऐसे हो सकते हैं, जिसके बारे में हम शायद कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। 
प्रोफेसर, हंक ग्रिली कहते हैं "मैं अमेरिका में इसलिए हूँ, क्योंकि मेरे दादा-परदादा ने ग्रेट आयरिश पोटैटो फेमिन का वो दौर देखा था जब आयरलैंड में उस समय के मुख्य भोजन आलू की खेती इन्फेक्शन के वजह से बर्बाद हो गयी थी। बीमारी और भुखमरी के उस दौर में बड़े पैमाने पर पलायन हुआ। हम इंसानो की हालत भी आलू जैसी हो सकती है। लेकिन हम आलू तो नहीं हैं। हमारे जैसे 7 अरब लोग और हैं। हम भला एक जैसा जींस क्यों चाहेंगे। ये सोचने की बात है"। 
जेनेटिक तकनीक मानव प्रजाति की विविधता के लिए उतना बड़ा खतरा न भी हो, लेकिन फ़ौरन जो खतरा सामने होगा, वो है गैरबराबरी का। 
प्रोफेसर, हंक ग्रिली कहते हैं "जेनेटिक तकनीक का इस्तेमाल हम मानव प्रजाति को बेहतर और स्मार्ट बनाने के लिए करें तो भी इसमें परेशानी ये है की ये तकनीक महंगी होने के वजह से सिर्फ कुछ लोगों के लिए ही उपलब्ध होगी। इसलिए मुझे लगता है की हमें जेनेटिक तकनीक सोसिओ इकनोमिक आस्पेक्ट की ओर ध्यान देना चाहिए"। 
सबसे बड़ा ऑब्जेक्शन सायद ये होगा की शायद मानव जींस के साथ किसी भी तरह का छेड़छाड़ करना पूर्ण रूप से अप्राकृतिक होगा। 
आईडिया सिर्फ ये नहीं है की स्वस्थ बच्चा चाहिए। लोग इससे बढ़कर सुपर इंटेलीजेंट, बेहद सुन्दर, और अच्छा हेल्थ-हाइट वाले बच्चे चाहेंगे जिनमे और भी खूबियां हो। जेनेटिक तकनीक से सिर्फ लोग बिमारियों को दूर नहीं करना चाहेंगे, वो इससे कहीं और ज्यादा बहुत कुछ बदलना चाहेंगे। हम कभी भी पूरी तरह से निश्चिंत नहीं हो सकते की कोई नयी खोज 100% सुरक्षित होगी। सबसे बड़ा ऑब्जेक्शन ये है की वैज्ञानिक हे जियानकुई ने जो किया, खुद उन्हें अंदाजा नहीं है की ये तकनीक कितनी खतरनाक हो सकती है। 
नैतिक तर्क यहीं ख़त्म नहीं होते, यही वजह है की जेनेटिक तकनीक जितनी उम्मीद जगाती है, उससे कहीं अधिक डराती है। जरा सोचकर देखिये, क्या होगा अगर कोई सिरफिरा शाशक अपने ही लोगों पर इस तकनीक को आजमाने लगे। इस सवाल का जवाब अभी बाकी है। 
अलटियस इंस्टिट्यूट ऑफ़ बायो मेडिकल सइंसेस के वैज्ञानिक, फियोडोर ओर्नोव कहते हैं "क्रिस्पर तकनीक से आप क्या करते हैं, मुझसे जब ये पूछा गया तो मैंने कहा, इसका ओहनेष्ट आंसर है, जेनेटिक इंजीनियरिंग से चलते फिरते लोग बनाते हैं। इस पर सामने वाले ने पल भर सोचने के बाद कहा, चाहे ये लीगल ही क्यों न हो लेकिन ऐसा कैसे कर सकते हैं"।   
बाकी दुनिया की तरह, चीन में भी क्रिस्पर तकनीक के इस्तेमाल पर कड़ी नजर राखी जाती है। इसके क़ानूनी पहलु पर विवाद हो सकता है लेकिन फियोडोर ओर्नोव जैसे वैज्ञानिक, Sickle Cell Disease जैसी जेनेटिक कंडीशन पर शोध कर रहे हैं। 
अफ़्रीकी महाद्वीप में कई ऐसे देश हैं जहाँ हर साल हजारो बच्चे  Sickle Cell Disease के साथ पैदा होते हैं और उनका उम्र 4 से 5 साल तक ही होती है। फियोडोर ओर्नोव जैसे वैज्ञानिक, अपने शोध के जरिये इन बच्चों की जिंदगी आसान बनाना चाहते है। 
"डिज़ाइनर बेबी" सुनने में जितना अच्छा लगता है उतना आसान है नहीं। इसमें होने वाली जीन एडिटिंग उतनी भी आसान नहीं है। किसी जेनेटिक बीमारी को दूर करने के लिए जीन में एडिटिंग करना और डिज़ाइनर बेबी के लिए जीन में एडिटिंग करना, दोनों में बड़ा फर्क है। 
जेनेटिक बीमारी के मामले में किसी खास जीन का पहचान करना अलग बात है लेकिन डिज़ाइनर बेबी के लिए अलग-अलग इफेक्ट्स वाले जीन का पहचान करके उसमे तालमेल बैठाना दूसरी बात है। 

डिज़ाइनर बेबी फ़िलहाल तो रियलिटी नहीं है लेकिन दुनिया भर के लोगों को इसका रियल होने का भ्रम जरूर है। 

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